कुलभूषण की फांसी पर रोक: ICJ का फैसला मानने के लिए बाध्य है पाक, पढ़ें नियम
कुलभूषण की फांसी पर रोक: ICJ का फैसला मानने के लिए बाध्य है पाक, पढ़ें नियम
PUBLISHED : May 19 , 9:07 AM

अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है। द हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा कि अंतिम फैसला आने तक जाधव की फांसी पर रोक लगाई जाती है। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार पाकिस्तान आदेश मानने से इन्कार नहीं कर सकता। आइसीजे चार्टर का आर्टिकल 59 कहता है कि इस अदालत का फैसला पक्षकारों पर बाध्यकारी होगा। यानी आइसीजे के समक्ष भारत और पाकिस्तान दोनों पक्षकार है ऐसे में उसका अंतरिम आदेश दोनों देशों पर बाध्यकारी है। यूएन चार्टर का अनुच्छेद 94 कहता है कि यूनाइटेड नेशन्स के सभी सदस्य आइसीजे के आदेश का पालन करेंगे जो कि उसके समक्ष उस मामले में पक्षकार होंगे।
पाक को झटका: अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने अंतिम फैसले तक जाधव की फांसी पर लगाई रोक
भारत के पास ये है विकल्प
ICJ ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि उसके आदेश पूरी तरह बाध्यकारी हैं और चूंकि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेश को मानने की शपथ लिए होते हैं, ऐसे में यह विरले ही होता है कि उसके फैसले लागू ना किए गए हों। आपको बता दें कि कोर्ट के पास आदेश को लागू करवाने के लिए सीधे कोई शक्ति नहीं होती। ऐसे में किसी देश को अगर लगता है कि दूसरे देश ने ICJ के आदेश की तामील नहीं की, तो वह इस पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में गुहार लगा सकता है। इस पर फिर सुरक्षा परिषद उस आदेश को लागू करवाने के लिए उस देश के खिलाफ कदम उठा सकता है।
चीन की अग्निपरीक्षा
अगर आईसीजे पाक सैन्य अदालत द्वारा दिए गए फांसी को रद्द कर देती है तो आईसीजे के फैसले को लागू कराने की जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद के सदस्यों पर होगी। इस मामले में अगर चीन पाक के पक्ष में वीटो कर देता है तो भारत के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। आपको बता दें कि चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और आतंकी मसूद अजहर मामले में वह पाक का साथ दे चुका है।
कुछ मौके पर सुरक्षा परिषद आईसीजे के फैसले को लागू करवाने में नाकाम रहा है। 1986 में निकारागुआ और अमेरिका के बीच का केस लें तो 1986 में अमेरिका ने उसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन का दोषी करार देने वाले ICJ के आदेश के क्रियांव्यन पर वीटो लगा दिया था। इस मामले में ICJ ने पाया था कि अमेरिका ने निकारागुआ सरकार के खिलाफ खड़े विद्रोहियों का समर्थन किया था।